غزل
میں کھو چکُا ہوں اپنی محبت کا اعتبار
دیکھے وہ اپنی آنکھ سے ہے اِس کا اِنتظار
ہر آئنے پہ چھایا ہے دودِ رواں کا عکس
دیکھوں کہاں میں اپنے خیالوں کا سبزہ زار
لے کے اُڑا ہے شاخ سے پتوں کی ٹولیاں
یوں گُنگُنا رہا ہے ہواؤں کا آبشار
کیوں دے رہا ہے شعروں میں لفظوں سے اک فریب
جو دل میں تیرے ہے اُسے بھی تو تُو پکار
دیکھا نہیں ہے آنکھوں سے محسوس تو کیا
کرنا پڑا یوں اُس کے بھی ہونے کا اعتبار
جو ہر فریبِ زیست کے جسموں کو ڈھک گیا
اُس زر نگار خواب کے کپڑے نہ تُو اُتار
ہم آتشِ فریب سے جل کر ہوئے ہیں راکھ
رکھ دے ہماری خاک میں چاہت کا اِک شرار
بہروپ تیرا آئینۂ جاں میں آ بسا
اب روپ مرے سامنے کوئی نہ اور دھار
~ راشد فضلی
A Ghazal by Rashid Fazli |
ग़ज़ल
मैं खो चुका हूँ अपनी मुहब्बत का ऐतेबार
देखे वह अपनी आँख से है इसका इंतेज़ार
ले के उड़ा है शाख़ से पत्तों की टोलियाँ
यूँ गुनगुना रहा है हवाओं का आबशार
क्यों दे रहा है शेरों में लफ़्ज़ों से इक फ़रेब
जो दिल में तेरे है उसे भी तो तू पुकार
देखा नहीं है आँखों से महसूस तो किया
करना पड़ा यूँ उसके भी होने का ऐतेबार
हम आतिशे-फ़रेब से जल कर हुये हैं राख
रख दे हमारी ख़ाक में चाहत का इक शरार
~ राशिद फ़ज़ली
मैं खो चुका हूँ अपनी मुहब्बत का ऐतेबार
देखे वह अपनी आँख से है इसका इंतेज़ार
ले के उड़ा है शाख़ से पत्तों की टोलियाँ
यूँ गुनगुना रहा है हवाओं का आबशार
क्यों दे रहा है शेरों में लफ़्ज़ों से इक फ़रेब
जो दिल में तेरे है उसे भी तो तू पुकार
देखा नहीं है आँखों से महसूस तो किया
करना पड़ा यूँ उसके भी होने का ऐतेबार
हम आतिशे-फ़रेब से जल कर हुये हैं राख
रख दे हमारी ख़ाक में चाहत का इक शरार
~ राशिद फ़ज़ली
A Ghazal by Rashid Fazli |
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